अब बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा? जानें सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा झटका! Daughters Inheritance Rights

By Meera Sharma

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Daughters Inheritance Rights

Daughters Inheritance Rights: आजकल सोशल मीडिया पर एक गलत खबर तेजी से फैल रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के संपत्ति अधिकार समाप्त कर दिए हैं। लेकिन यह बात पूर्णतः गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने कोई नया कानून नहीं बनाया है और न ही बेटियों के मौजूदा अधिकारों में कोई कटौती की है। न्यायालय ने केवल पुराने कानूनी भ्रम को स्पष्ट किया है, विशेष रूप से पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के संबंध में। इस फैसले का मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मेहनत से कमाई गई संपत्ति के लिए वसीयत बना देता है, तो उस वसीयत का सम्मान किया जाना चाहिए।

स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में अंतर

संपत्ति के अधिकारों को समझने के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में क्या अंतर है। स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, नौकरी, व्यापार या व्यक्तिगत प्रयासों से कमाई हो। इसमें वह व्यक्ति पूर्ण स्वामी होता है और अपनी इच्छा के अनुसार वसीयत बना सकता है। दूसरी ओर, पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ियों से चली आ रही हो और पिता को अपने पिता या दादा से विरासत में मिली हो। इस प्रकार की संपत्ति में सभी कानूनी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का वास्तविक अर्थ

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाल के फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पिता ने अपनी स्व-अर्जित संपत्ति के लिए वसीयत बनाई है, तो उस वसीयत के अनुसार ही संपत्ति का वितरण होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों के अधिकार समाप्त हो गए हैं, बल्कि यह केवल वसीयत की मान्यता को स्वीकार करता है। यदि कोई वसीयत नहीं है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार सभी कानूनी उत्तराधिकारी, जिसमें बेटा, बेटी और पत्नी शामिल हैं, संपत्ति में बराबर के हकदार होंगे।

पैतृक संपत्ति में बेटियों के अधिकार बरकरार

पैतृक संपत्ति के मामले में बेटियों के अधिकारों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। 2005 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम संशोधन के बाद से बेटियों को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार उनकी वैवाहिक स्थिति पर निर्भर नहीं करता। चाहे बेटी शादीशुदा हो या अविवाहित, उसे पैतृक संपत्ति में उतना ही हिस्सा मिलने का अधिकार है जितना बेटे को मिलता है। यह अधिकार कोई नई चीज नहीं है बल्कि पहले से ही कानून में मौजूद है।

कानूनी स्थिति की स्पष्टता और भविष्य की दिशा

2020 में विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी स्पष्ट किया था कि बेटी को जन्म से ही संपत्ति में अधिकार प्राप्त है। 2025 का यह नया फैसला उसी दिशा में एक और कदम है जो वसीयत की वैधता को स्वीकार करता है। न्यायालय का यह रुख संतुलित है क्योंकि यह व्यक्तिगत संपत्ति पर मालिक के अधिकार को भी मान्यता देता है और साथ ही वंशानुगत संपत्ति में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा भी करता है।

व्यवहारिक सुझाव और सावधानियां

बेटियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और गलत अफवाहों से बचना चाहिए। संपत्ति से संबंधित किसी भी विवाद की स्थिति में पहले यह जांचना आवश्यक है कि संपत्ति स्व-अर्जित है या पैतृक। यदि वसीयत मौजूद है तो उसकी वैधता की जांच करानी चाहिए। जटिल मामलों में अनुभवी वकील से सलाह लेना उचित रहता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह समझना कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओं के विरुद्ध नहीं है बल्कि कानूनी स्पष्टता लाने के लिए है। सच्चाई यह है कि बेटियों के संपत्ति अधिकार पहले की तरह सुरक्षित हैं और केवल वसीयत के मामलों में स्पष्टता आई है।

अस्वीकरण: यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है और किसी विशिष्ट कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है। संपत्ति संबंधी किसी भी विवाद के लिए योग्य वकील से परामर्श लेना आवश्यक है।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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